Girl in a jacket
Optimized image
muskuraateraho.in

श्रीमन नारायण नारायण हरी हरी

 

ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे सरल माध्यम है - भक्ति।

 

ईश्वर की इच्छा सरल और स्पष्ट है। वह चाहता है कि हम अपने जीवन में अच्छाई, सत्य, दया, प्रेम और निस्वार्थ सेवा का पालन करें। वह चाहता है कि हम उसे सच्चे मन से पूजें, विश्वास रखें और आत्मज्ञान प्राप्त करें। जब हम इन सभी गुणों को अपने जीवन में अपनाते हैं, तो हम ईश्वर के नजदीक पहुंच सकते हैं। इस प्रकार, ईश्वर की इच्छाओं के अनुसार जीवन जीकर हम अपने जीवन को सुंदर और संतुष्ट बना सकते हैं।

 

जरूरी नहीं कि मिठाई खिलाकर ही दूसरों का मुंह मीठा करें, आप मीठा बोलकर भी लोगों को खुशियां दे सकते हैं

 

ईश्वर क्या चाहता है?

 

ईश्वर, वह अनंत और असीम शक्ति हैं, जो सृष्टि के हर कण में व्याप्त हैं। हर धर्म में ईश्वर को सर्वोच्च, सर्वशक्तिमान और निराकार शक्ति के रूप में माना गया है। ईश्वर के बारे में बहुत से सवाल होते हैं, जिनमें एक प्रमुख सवाल यह है कि ईश्वर क्या चाहता है? यह सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है, खासकर तब जब जीवन में कठिनाइयाँ रही हों। इस लेख में हम समझने की कोशिश करेंगे कि ईश्वर वास्तव में क्या चाहता है।

 

1. अच्छाई और सद्गुण

 

ईश्वर सबसे पहले यह चाहता है कि हम अच्छे इंसान बनें। वह चाहते हैं कि हम अपने जीवन में सत्य, अहिंसा, प्रेम, दया और करुणा जैसे गुणों को अपनाएं। जीवन के हर क्षेत्र में अच्छाई का पालन करना, अपने आसपास के लोगों के साथ अच्छे व्यवहार करना और समाज की भलाई के लिए काम करना ईश्वर की इच्छा के अनुरूप है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में भी कहा है, "जो अच्छा कर्म करता है, वह मुझे प्रिय है।"

 

ईश्वर यह नहीं चाहता कि हम एक-दूसरे से द्वेष करें या बुरे कर्म करें। वह चाहता है कि हम अपने कर्मों के माध्यम से समाज में सुख और शांति लाएं। इस दुनिया में अच्छाई फैलाने से ही हम ईश्वर के करीब पहुंच सकते हैं।

 

2. निस्वार्थ सेवा

 

ईश्वर यह चाहता है कि हम निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करें और अपनी सेवा के माध्यम से समाज के कल्याण के लिए काम करें। जब हम बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद करते हैं, तो हम ईश्वर की इच्छा के अनुरूप कार्य करते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है, "कर्म करते रहो, लेकिन उसके फल की चिंता मत करो।"

 

निस्वार्थ सेवा का मतलब है कि हम अपनी मदद और सेवा से किसी को लाभ पहुंचाने की कोशिश करें, कि इसके बदले में कुछ प्राप्त करने की उम्मीद रखें। ईश्वर का यह संदेश है कि हमें जीवन में अपनी जिम्मेदारी समझते हुए, बिना किसी अहंकार के दूसरों के लिए काम करना चाहिए।

 

3. श्रद्धा और विश्वास

 

ईश्वर यह चाहता है कि हम उसे सच्चे मन से पूजें और उस पर विश्वास रखें। श्रद्धा और विश्वास से जुड़े हर कार्य में ईश्वर का साथ होता है। जब हम अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो हमें ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए कि वह हमारी मदद करेंगे। श्रद्धा का मतलब है, बिना किसी शंका के ईश्वर में विश्वास रखना।

 

ईश्वर का यह संदेश है कि हमें अपने कर्मों के साथ-साथ उसकी कृपा और आशीर्वाद पर भी विश्वास रखना चाहिए। पूजा, प्रार्थना और ध्यान के माध्यम से हम अपनी आस्था को और मजबूत बना सकते हैं।

 

 

4. आत्मज्ञान और आत्मसाक्षात्कार

 

ईश्वर यह भी चाहता है कि हम अपने आत्मा को पहचानें और जीवन के असली उद्देश्य को समझें। आत्मज्ञान प्राप्त करने का मतलब है अपनी आत्मा और परमात्मा के बीच के संबंध को समझना। जब हम अपने भीतर की शांति और शक्ति को पहचानते हैं, तो हम ईश्वर के करीब पहुंच सकते हैं।

 

ध्यान, साधना और चिंतन के माध्यम से हम आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। जब हम अपने अंदर के सच्चे स्वभाव को पहचानते हैं, तो हम पाते हैं कि हम और ईश्वर एक ही सत्य के रूप हैं। ईश्वर यही चाहता है कि हम अपने भीतर की दिव्यता को पहचानें और उसे पूरी तरह से समझें।

5. सच्चाई का पालन

ईश्वर सच्चाई को बहुत महत्व देते हैं। वह चाहते हैं कि हम हमेशा सत्य बोलें और सत्य के मार्ग पर चलें। जीवन में झूठ और कपट से बचना चाहिए और सच्चे मार्ग पर चलकर अपने कर्मों से सत्य का पालन करना चाहिए। गीता में श्री कृष्ण ने कहा है, "सत्य हमेशा विजय प्राप्त करता है।" इसलिए, हमें हमेशा सत्य का पालन करते हुए जीवन में ईश्वर की इच्छाओं के अनुसार चलने की कोशिश करनी चाहिए।

 

 

ईश्वर के विषय में विचार करना एक गहरी और अनंत यात्रा है। यह सिर्फ एक धार्मिक विषय नहीं है, बल्कि जीवन के हर पहलू से जुड़ा हुआ है। भक्ति, ज्ञान, कर्म और ध्यान के माध्यम से हम ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयास कर सकते हैं।

 

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हमें एक सरल, सच्चे और ईमानदार हृदय से प्रयास करना होता है। ईश्वर कभी दूर नहीं होते, बल्कि वे हमारे भीतर ही मौजूद होते हैं। जब हम अपने दिल से ईश्वर को पुकारते हैं और अपनी आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं, तब हम ईश्वर के नजदीक पहुंच सकते हैं।

 

ईश्वर को प्राप्त करने का कोई निश्चित तरीका नहीं है, लेकिन यदि हम अपनी आस्था, प्रेम और अच्छे कर्मों के साथ जीवन जीते हैं, तो हम निश्चित रूप से ईश्वर के साथ एक सशक्त संबंध स्थापित कर सकते हैं।

 

ईश्वर एक ऐसा विषय है जिस पर सदियों से विचार होते रहे हैं। धार्मिक, दार्शनिक, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ईश्वर को समझने की कोशिश की गई है। कोई भी व्यक्ति जब इस विषय पर विचार करता है, तो उसके मन में यह सवाल जरूर उठता है कि "ईश्वर क्या है?" और "ईश्वर को कैसे प्राप्त करें?" इस लेख में हम इसी सवाल का उत्तर साधारण और सरल शब्दों में देने की कोशिश करेंगे।

 

श्री हनुमान चालीसा

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुँचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। कांधे मूंज जनेउ साजे।।

शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन।।

बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।

जुग सहस्र जोजन पर भानु। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।

संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।

और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु संत के तुम रखवारे।। असुर निकन्दन राम दुलारे।।

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुह्मरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै।।

अंत काल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

सङ्कट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बन्दि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।

I जय श्री हनुमान I

 

1. ईश्वर क्या है?

ईश्वर को समझने के लिए सबसे पहले हमें यह जानना होगा कि ईश्वर का मतलब क्या है। आमतौर पर हम यह मानते हैं कि ईश्वर एक अदृश्य शक्ति है, जो हमारे जीवन और पूरी सृष्टि का कर्ता, रक्षक और पालक है। यह शक्ति अनंत, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और निराकार होती है। हर धर्म में ईश्वर की व्याख्या अलग-अलग तरीकों से की गई है, लेकिन सभी धर्मों का मुख्य संदेश यही है कि ईश्वर एक श्रेष्ठ शक्ति है, जो पूरे ब्रह्मांड का संचालन करता है।

भारत में हिंदू धर्म में ईश्वर को अनेक रूपों में पूजा जाता है। जैसे, ब्रह्मा (सृष्टि का सृजनकर्ता), विष्णु (पालक) और शिव (संहारक) इसके अलावा, साकार रूप में भी ईश्वर की पूजा होती है, जैसे भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, दुर्गा माता, आदि। इसी प्रकार अन्य धर्मों में भी ईश्वर की अलग-अलग पहचान है, जैसे इस्लाम में अल्लाह, ईसाई धर्म में भगवान (God) और बौद्ध धर्म में निर्वाण की प्राप्ति।

ईश्वर को समझने की कोई एक निश्चित और एकमात्र परिभाषा नहीं है, क्योंकि यह एक मानसिक और आध्यात्मिक अनुभव है, जिसे व्यक्ति अपने व्यक्तिगत अनुभव से ही महसूस कर सकता है।

 2. ईश्वर की उपासना का महत्व

ईश्वर की उपासना एक व्यक्ति की आत्मा की शुद्धि के लिए जरूरी है। जब हम ईश्वर को याद करते हैं, उसकी पूजा करते हैं, तब हमारी आत्मा में शांति और सुख का अहसास होता है। पूजा, प्रार्थना, ध्यान और साधना के माध्यम से हम ईश्वर के साथ अपने संबंध को मजबूत करते हैं। यह हमें जीवन के कठिन समय में धैर्य रखने की शक्ति देता है।

हमें यह समझना चाहिए कि ईश्वर की उपासना सिर्फ आस्था का विषय नहीं है, बल्कि यह एक जीवनदर्शन है, जो हमें सही रास्ते पर चलने और अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देता है। जब हम अच्छे कर्म करते हैं और अपनी गलतियों को सुधारते हैं, तो हम ईश्वर के करीब पहुंचते हैं।

 

3. ईश्वर को कैसे प्राप्त करें?

ईश्वर को प्राप्त करने के कई मार्ग हैं, जो विभिन्न धर्मों और आस्थाओं में विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किए गए हैं। हालांकि, सभी मार्गों का उद्देश्य एक ही हैईश्वर से मिलन। कुछ प्रमुख मार्ग निम्नलिखित हैं:

 3.1. भक्ति मार्ग (Devotion)

भक्ति मार्ग में एक व्यक्ति अपनी श्रद्धा, प्रेम और आस्था के साथ ईश्वर की उपासना करता है। यह मार्ग विशेष रूप से हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है, लेकिन अन्य धर्मों में भी इसका अस्तित्व है। भक्ति के माध्यम से व्यक्ति ईश्वर के साथ अपनी आत्मा का मिलन चाहता है।

भक्ति में तीन प्रमुख तत्व होते हैं:

- श्रद्धा: यह विश्वास और निष्ठा है, जो हमें ईश्वर के प्रति अपने दिल से महसूस होती है।

- प्रेम: ईश्वर के प्रति एक सच्चा प्रेम और उसके प्रति पूरी निष्ठा।

- समर्पण: अपने अहंकार को छोड़कर ईश्वर के चरणों में समर्पण करना।

भक्ति के द्वारा हम केवल ईश्वर से मिलते हैं, बल्कि हमारे भीतर एक प्रकार की आंतरिक शांति और संतोष भी उत्पन्न होता है। यह मार्ग सरल और सीधा है, क्योंकि इसमें कोई जटिलता नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी भाषा और तरीके से ईश्वर को याद कर सकता है, जैसे मंत्रों का जाप करना, भजन करना, या ध्यान करना।

 3.2. ज्ञान मार्ग (Knowledge)

ज्ञान मार्ग का मतलब है, ईश्वर के बारे में गहन अध्ययन और आत्मा के सत्य को जानना। इसमें व्यक्ति अपनी बुद्धि का उपयोग करता है और ईश्वर के बारे में अपने भीतर जागरूकता प्राप्त करता है। यह मार्ग ज्यादा मानसिक और बौद्धिक होता है, जिसमें व्यक्ति ईश्वर को समझने के लिए तात्त्विक रूप से गहरे विचार करता है।

ज्ञान मार्ग में सबसे प्रमुख बात यह है कि व्यक्ति आत्मा और परमात्मा के अंतर को समझे और यह अनुभव करे कि ईश्वर हर स्थान और हर वस्तु में विद्यमान हैं। यह मार्ग विशेष रूप से वेदांत और उपनिषदों में प्रचलित है।

 3.3. कर्म मार्ग (Action)

कर्म मार्ग वह मार्ग है, जिसमें व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अपने दैनिक कार्यों और कर्मों के माध्यम से प्रयास करता है। इसका मतलब यह नहीं है कि हमें सिर्फ पूजा या साधना करनी है, बल्कि हमें अपने हर कर्म को ईश्वर के लिए करना है। यह मार्ग साधारण रूप से सबसे व्यावहारिक होता है, क्योंकि इसमें हर व्यक्ति अपने कार्यों के द्वारा ईश्वर की पूजा कर सकता है।

कर्म मार्ग में व्यक्ति यह समझता है कि उसके हर कार्य का ईश्वर से संबंध है और उसे अपने कार्यों में निस्वार्थ भाव से कार्य करना चाहिए। यह मार्ग महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्य के सिद्धांत से भी जुड़ा हुआ है।

Continued next to contact page