श्रीमन नारायण नारायण हरी हरी
जब हम इस विशाल ब्रह्मांड को देखते हैं, तो उसमें असंख्य जीव-जंतु, पेड़-पौधे, पर्वत, नदियाँ, आकाश और तारों से भरा एक अद्भुत संसार दिखाई देता है। परंतु मनुष्य को इनमें सबसे विशिष्ट स्थान दिया गया है। मनुष्य के पास बुद्धि है, विवेक है, सोचने-समझने की क्षमता है और सबसे महत्वपूर्ण – ईश्वर को जानने की शक्ति है।
यह प्रश्न युगों से विचारकों, संतों, दार्शनिकों और आम इंसानों को गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करता रहा है – "भगवान ने मनुष्य को क्यों जन्म दिया?"
तो क्या भगवान ने मनुष्य को केवल एक और प्राणी की तरह जन्म दिया, या इसके पीछे कोई बड़ा उद्देश्य है?
सृष्टि की योजना में मनुष्य की भूमिका
भगवान ने यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक निश्चित योजना और उद्देश्य के साथ रचा है। प्रत्येक जीव, प्रत्येक कण किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति करता है। परंतु मनुष्य को सबसे विशेष इसीलिए माना गया है क्योंकि उसमें चेतना का उच्चतम स्तर है।
उद्देश्य क्या है?
भगवान ने मनुष्य को केवल जीने, खाने, सोने और प्रजनन के लिए नहीं बनाया, बल्कि उसे एक आत्मिक विकास की यात्रा पर भेजा है। उसका जन्म इसलिए हुआ है कि वह अपने भीतर छिपे दिव्य तत्व को पहचाने और उस परम सत्ता की ओर वापस लौटे जिससे वह उत्पन्न हुआ है।
वेदों, उपनिषदों और भगवद्गीता जैसे धर्मग्रंथों के अनुसार, मनुष्य केवल एक शरीर नहीं है, बल्कि वह एक अमर आत्मा है जो परमात्मा का अंश है।
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं:
"ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन:"
अर्थात – "सभी जीव मुझसे ही उत्पन्न हुए हैं, वे मेरे ही अंश हैं।"
भगवान ने मनुष्य को इसलिए जन्म दिया ताकि वह अपनी आत्मा को पहचान सके, अपने भीतर की दिव्यता को जागृत कर सके और अंततः परमात्मा से एक हो सके।
हिंदू धर्म के अनुसार, आत्मा अनेक योनियों में जन्म लेती है – 84 लाख योनियों में घूमती है। परंतु मानव योनि ही एकमात्र ऐसी योनि मानी गई है जिसमें मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
कबीरदास कहते हैं:
"दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
जैसे कंचन गढ़ मिले, टूटे न मिलय दोबार।"
मनुष्य को जन्म इसलिए मिला है ताकि वह अपने कर्मों से ऊपर उठकर, ज्ञान और भक्ति से मोक्ष प्राप्त कर सके। अन्य जीव केवल अपने स्वभाव के अनुसार जीते हैं, पर मनुष्य के पास स्वतंत्र इच्छा है – वह ईश्वर की ओर भी जा सकता है और अधर्म की ओर भी।
भगवान का अनुभव करने की क्षमता
भगवान ने मनुष्य को इसलिए जन्म दिया क्योंकि वही ऐसा प्राणी है जो अपने अस्तित्व के बारे में प्रश्न करता है –
"मैं कौन हूँ?"
"मैं कहाँ से आया हूँ?"
"मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?"
"भगवान क्या हैं?"
यह जिज्ञासा ही मनुष्य को विशिष्ट बनाती है। यह उसे आत्मा, धर्म, ईश्वर, कर्म और मोक्ष की ओर ले जाती है। यह वही शक्ति है जो मनुष्य को पशु से देवता बना सकती है।
जीवन – एक परीक्षा और साधना का मार्ग
मनुष्य का जीवन एक प्रकार की परीक्षा है। भगवान ने हमें विवेक दिया, पर साथ में मोह, माया और विकल्प भी दिए। अब यह मनुष्य पर है कि वह किस मार्ग को चुने।
जीवन में जो संघर्ष, दुख, मोह और लोभ हैं, वे सब आत्मा के परीक्षण के साधन हैं। यदि मनुष्य इन पर विजय पा लेता है और अपने भीतर के सत्य, प्रेम, दया और सेवा भाव को जागृत करता है, तो वह ईश्वर का प्रिय बनता है।
सेवा और सृष्टि में सहयोग का माध्यम
भगवान ने मनुष्य को एक सह-निर्माता के रूप में बनाया है। वह स्वयं तो अनंत है, पर इस सृष्टि में मनुष्य को संकल्प, रचना और सेवा की शक्ति दी गई है।
मनुष्य के पास यह क्षमता है कि वह न केवल अपने लिए जिए, बल्कि दूसरों के लिए भी कुछ करे – समाज का भला करे, पीड़ितों की सेवा करे, ज्ञान फैलाए, और प्रेम बांटे। इस तरह मनुष्य ईश्वर की सृष्टि का सहायक बन जाता है।
प्रेम, भक्ति और समर्पण का आदर्श पात्र
ईश्वर ने मनुष्य को जन्म इसलिए दिया कि वह प्रेम का आदान-प्रदान कर सके।
ईश्वर प्रेम हैं – और मनुष्य उस प्रेम को अनुभव करने, व्यक्त करने और लौटाने का माध्यम है।
संत तुलसीदास, मीरा, सूरदास, रामकृष्ण परमहंस जैसे भक्तों ने अपने जीवन को पूर्णत: भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया और यह दिखाया कि मनुष्य प्रेम और भक्ति से भगवान को भी जीत सकता है।
सृजन और चेतना की पराकाष्ठा
भगवान ने मनुष्य को एक रचनात्मक चेतना दी – जिससे वह कला, संगीत, विज्ञान, साहित्य, और दर्शन जैसी चीज़ें विकसित करता है। यह सृजनात्मकता भगवान की ही प्रतिछाया है।
जब कोई कवि कविता रचता है, कोई चित्रकार चित्र बनाता है या कोई वैज्ञानिक नई खोज करता है – वह सब उस दिव्य चेतना का ही विस्तार है जो भगवान ने मनुष्य को दी है।
आध्यात्मिक जागरूकता – आत्मा की यात्रा
मनुष्य को इसलिए जन्म मिला है ताकि वह आज्ञा और अज्ञान के बीच का पुल पार कर सके। उसका जन्म केवल शरीर के अनुभवों के लिए नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई में उतरने के लिए हुआ है।
योग, ध्यान, भक्ति, सेवा, जप और सत्संग जैसे साधनों के माध्यम से वह इस यात्रा को शुरू करता है और अंततः ईश्वर के साक्षात्कार तक पहुँच सकता है।
मनुष्य-भगवान की सृष्टि का दर्पण
ईश्वर ने मनुष्य को जन्म दिया ताकि वह अपने अस्तित्व को एक दर्पण में देख सके।
मनुष्य जब प्रेम करता है, क्षमा करता है, सेवा करता है, तब उसमें ईश्वर का ही रूप झलकता है। जब वह सत्य पर चलता है, धर्म का पालन करता है, दूसरों के लिए जीता है – तब वह सृष्टि के उद्देश्य को पूर्ण करता है।
भगवान के दृष्टिकोण से मनुष्य का जन्म
यदि हम कल्पना करें कि भगवान स्वयं कहें –
"मैंने मनुष्य को क्यों जन्म दिया?"
तो शायद वह उत्तर कुछ इस तरह होगा:
"मैंने तुम्हें इसलिए जन्म दिया क्योंकि मैं चाहता था कि तुम मेरे अंश के रूप में संसार में प्रकाश फैलाओ।
मैंने तुम्हें चेतना दी, ताकि तुम अपने भीतर की दिव्यता को पहचान सको।
मैंने तुम्हें स्वतंत्रता दी, ताकि तुम स्वयं अपने रास्ते चुनो – और जब तुम मेरी ओर लौटो, तो वह तुम्हारा स्वयं का निर्णय हो।
मैं चाहता था कि तुम प्रेम करो, सेवा करो, ज्ञान को समझो, और अंततः अपने भीतर मुझे ही अनुभव करो।"
भगवान ने मनुष्य को जन्म दिया
क्योंकि वह चाहता था कि उसकी सृष्टि में एक ऐसा प्राणी हो, जो उसे समझ सके, प्रेम कर सके, अनुभव कर सके, और उसकी महिमा को संसार में प्रकट कर सके।
मनुष्य केवल मांस और रक्त नहीं, वह एक दिव्य आत्मा है – जिसे ईश्वर ने अपने ज्ञान, प्रेम और चेतना का दर्पण बनाकर भेजा है।
जब मनुष्य इस उद्देश्य को समझता है, तब उसका जीवन केवल सांस लेने की प्रक्रिया नहीं रहता, बल्कि वह एक आध्यात्मिक यात्रा बन जाता है – जो स्वयं से शुरू होकर परमात्मा तक जाती है।
भगवान को कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
"भगवान को कैसे प्राप्त किया जा सकता है?"
यह प्रश्न हर धार्मिक, आध्यात्मिक और जिज्ञासु आत्मा के मन में कभी न कभी उठता है। मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य यदि कुछ है, तो वह है – ईश्वर की प्राप्ति।
जब मनुष्य संसार के सुखों से थक जाता है, जब उसे यह समझ आने लगता है कि धन, प्रतिष्ठा, भौतिक सुविधाएं केवल क्षणिक सुख देती हैं – तब वह भीतर से ईश्वर की खोज करने लगता है।
भगवान को प्राप्त करने का मार्ग क्या है?
क्या वह केवल मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर या गुरुद्वारे में मिलते हैं?
क्या वह केवल तपस्वियों और संन्यासियों को ही मिलते हैं?
या फिर हर एक मनुष्य उन्हें प्राप्त कर सकता है?
भगवान को प्राप्त करने के विभिन्न मार्ग क्या हैं, और सामान्य व्यक्ति भी कैसे ईश्वर को अनुभव कर सकता है।
भगवान क्या हैं?
किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए पहले यह जानना आवश्यक है कि वह क्या है।
भगवान का स्वरूप:
भगवान सर्वव्यापक हैं – वे हर कण में व्याप्त हैं।
वे सर्वज्ञ हैं – सब कुछ जानते हैं, अंदर और बाहर।
वे सर्वशक्तिमान हैं – उनसे ऊपर कोई नहीं।
वे प्रेम, करुणा, आनंद, शांति और ज्ञान का सागर हैं।
वे निराकार भी हैं और साकार भी।
भगवान कोई बाहर की वस्तु नहीं हैं, वे हमारे भीतर हैं।
हम उन्हें भौतिक आँखों से नहीं देख सकते, लेकिन अनुभव कर सकते हैं – भक्ति, ज्ञान और साधना के माध्यम से।
ईश्वर प्राप्ति का उद्देश्य क्या है?
भगवान की प्राप्ति का उद्देश्य केवल किसी अद्भुत अनुभव को पाना नहीं, बल्कि पूर्णता प्राप्त करना है।
जब आत्मा अपने स्त्रोत (परमात्मा) से मिलती है, तभी वह संपूर्ण होती है। यह मिलन ही मोक्ष, परमानंद और शाश्वत शांति की स्थिति है। यही जीवन का परम लक्ष्य है।
भगवान को प्राप्त करने के प्रमुख मार्ग
विभिन्न धर्मों और संतों ने ईश्वर तक पहुँचने के अलग-अलग मार्ग बताए हैं। मुख्यतः चार मार्ग माने गए हैं:
भक्ति मार्ग, ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग, योग मार्ग
इनमें से कोई एक या इनका संयोजन अपनाकर भी ईश्वर की प्राप्ति संभव है।
भक्ति मार्ग – प्रेम से प्रभु प्राप्ति
"प्रेम मार्ग पग कठिन है" – यह मार्ग हृदय से चलता है, बुद्धि से नहीं।
भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण
निरंतर नाम स्मरण
सेवा, भजन, कीर्तन, पूजा
संतों का संग और मार्गदर्शन
अहंकार का पूर्ण त्याग
मीरा बाई, जिनका प्रेम श्रीकृष्ण से एकनिष्ठ था।
सूरदास, जिन्होंने अंधे होने पर भी भगवान को दृष्टि से अधिक गहराई से देखा।
तुलसीदास, जिन्होंने श्रीराम में परम तृप्ति पाई।
भक्ति मार्ग में भगवान सखा, पुत्र, प्रेमी या गुरु के रूप में महसूस किए जाते हैं।
रोज सुबह उठकर भगवान का नाम लेना
भोजन से पहले उनका धन्यवाद
सेवा करना (गौ सेवा, भूखे को खाना, माता-पिता की सेवा आदि)
मंदिर या शांत स्थान में बैठकर प्रार्थना करना
ज्ञान मार्ग – आत्मा से परमात्मा की ओर
यह मार्ग विचार और विवेक पर आधारित है।
“आत्मा ही परमात्मा है” – इस सत्य को अनुभव करने का प्रयास इस मार्ग में होता है।
"तत्त्वमसि" – तू वही है।
"अहं ब्रह्मास्मि" – मैं ही ब्रह्म हूँ।
स्व-चिंतन
आत्म-निरीक्षण
वेद, उपनिषद्, गीता का अध्ययन
सत्संग और ज्ञानी संतों की सेवा
यह मार्ग गहरा है लेकिन कठिन भी, क्योंकि यह अहंकार, भ्रम और माया को काटता है।
कर्म मार्ग – निष्काम सेवा द्वारा ईश्वर प्राप्ति
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" – श्रीकृष्ण
यह मार्ग बताता है कि भगवान की प्राप्ति कर्तव्य परायणता और निष्काम कर्म से संभव है।
हर कार्य भगवान को समर्पित भाव से करना
फल की चिंता किए बिना कर्म करना
सेवा को साधना बनाना
अहंकार रहित कर्म
जनक महाराज, जिन्होंने राज्य चलाते हुए आत्मज्ञान पाया।
महात्मा गांधी, जिनका कर्म भी भक्ति था।
अपने काम, परिवार, व्यवसाय को सेवा भाव से करें
दूसरों की सहायता करें – निःस्वार्थ भाव से
हर दिन का काम भगवान को समर्पित करके करें
योग मार्ग – ध्यान और साधना के द्वारा मिलन
यह मार्ग मन, इंद्रियों और आत्मा को नियंत्रित करके अंतर्मुखी होने का है।
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि
योग का अंतिम लक्ष्य है – समाधि, जहाँ आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है।
प्रतिदिन ध्यान, नियमित योगासन और प्राणायाम, आहार और आचरण में सात्विकता, मौन, ब्रह्मचर्य, तप और संयम का अभ्यास
भगवान को पाने की व्यावहारिक तैयारी
शुद्ध आचरण:
सत्य बोलना, दया, क्षमा और करुणा, अहिंसा और संयम
सात्विक जीवन:
शुद्ध आहार – शाकाहार, बिना तामसिक वस्तुएँ, समय पर सोना-जागना, नियमित ध्यान और पाठ
संगति का प्रभाव:
संतों की संगति करें, अच्छे विचारों वाले लोगों के साथ रहें, सकारात्मक और ईश्वर-भावना से भरपूर वातावरण में रहें
ईश्वर प्राप्ति में बाधाएँ और उनके समाधान
बाधाएँ:
अहंकार – "मैं ही सब कुछ जानता हूँ"
मोह – भौतिक वस्तुओं से अत्यधिक लगाव
काम, क्रोध, लोभ, मद, मत्सर
नियमितता की कमी – साधना छोड़ देना
संदेह – "क्या भगवान सच में हैं?"
समाधान:
संतों के जीवन से प्रेरणा लें, जप, ध्यान, साधना नियमित करें, अच्छे ग्रंथों का अध्ययन करें, मन को बार-बार ईश्वर में लगाएँ, मन में प्रेम, श्रद्धा और धैर्य रखें
भगवान को अनुभव कैसे करें?
भगवान को पाया नहीं जा सकता, केवल अनुभव किया जा सकता है।
अनुभव के संकेत:
अनोखी आंतरिक शांति, किसी भी परिस्थिति में संतुलन, अंतर से उठता प्रेम और करुणा, गहरी श्रद्धा और समर्पण, मन का भगवान की ओर खिंचाव
क्या हर कोई भगवान को प्राप्त कर सकता है?
ईश्वर सभी के लिए हैं – वे जाति, धर्म, भाषा, रंग या रूप नहीं देखते।
जो सच्चे मन से उन्हें चाहता है, उन्हें पाता है।
"सत्य निष्ठा, प्रेम और धैर्य" – यही भगवान तक पहुँचने की सच्ची सीढ़ियाँ हैं।
भगवान को पाने का सबसे सरल उपाय – नाम स्मरण
कली युग में सबसे सरल उपाय है –
"हरि नाम संकीर्तन"।
कहते हैं – "नाम जप कली काल का एक ही आधार है।"
राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, अल्लाह, यीशु – नाम कोई भी हो,
यदि प्रेम और श्रद्धा से जपा जाए, तो वह आत्मा को परमात्मा से जोड़ देता है।
भगवान को प्राप्त करने का रहस्य
भगवान कोई दूर बैठी शक्ति नहीं हैं –
वे हमारे भीतर हैं।
उनकी प्राप्ति बाहर नहीं, अपने अंदर उतरने में है।
जब मन शांत होता है, जब हृदय विनम्र होता है,
जब संकल्प पवित्र होते हैं,
तो वह परमात्मा अपने आप प्रकट हो जाते हैं।
इसलिए, रोज़ थोड़ा समय निकालिए –
ईश्वर के लिए, आत्मा के लिए, मौन के लिए।
और तब आपको स्वयं अनुभव होगा –
ईश्वर यहीं हैं, आपके भीतर।
यदि प्रेम और श्रद्धा से जपा जाए, तो वह आत्मा को परमात्मा से जोड़ देता है।